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मय

सुबह भी होती है, शाम भी होती है।
मंज़िल एक मगर ख्वाहिशें तमाम होती हैं।

हर जाम बड़े तस्कीन से लबों पर रखता हूँ
के मय की हर घूँट तेरे नाम होती है।

मेरी आदतें हर मोहल्ले में मशहूर हैं।
बदनसीब है इज़्ज़त जो मुझसे बदनाम होती है।

चिराग हूँ, जलता हूँ सौ मर्तबा जब
तीरे होंठों पर लूट सरेआम होती हैं।

कुमार